माँगन गै सो मर रहै, मरै जु माँगन जाहिं।
तिनते पहिले वे मरे, होत करत हैं नहिं॥
अजहूँ तेरा सब मिटै, जो मानै गुरु सीख।
जब लग तू घर में रहैं, मति कहुँ माँगे भीख॥
अनमाँगा तो अति भला, माँगि लिया नहीं दोष।
उदर समाता माँगि ले, निश्चै पावै मोष॥
सहत मिले तो दूध है, माँगि मिलै सौ पानि।
कहैं कबीर वह रक्त है, जामे ऐंचातानि॥
माँगन मरण समान है, तेहि दई मैं सीख।
कहैं कबीर समझाय को, मति कोई माँगै भीख॥
अनमांगा उत्तम कहा, मध्यम माँगि जोलेय।
कहैं कबीर निकृष्टि सो, पर घर धरना देय॥