कबीर सोई दिन भला, जा दिन साधु मिलाय।
अंक भरे भरि भेरिये, पाप शरीर जाय॥
दरशन कीजै साधु का, दिन में कइ कइ बार।
आसोजा का भेह ज्यों, बहुत करे उपकार॥
दोय बखत नहिं करि सके, दिन में करू इकबार।
कबीर साधु दरश ते, उतरैं भव जल पार॥
दूजे दिन नहीं करि सके, तीजे दिन करू जाय।
कबीर साधु दरश ते, मोक्ष मुक्ति फन पाय॥
बार - बार नहिं करि सकै, पाख - पाख करि लेय।
कहैं कबीर सों भक्त जन, जन्म सुफल करि लेय॥
मास - मास नहिं करि सकै, छठे मास अलबत।
थामें ढ़ील न कीजिये, कहैं कबीर अविगत॥
बरस - बरस नहिं करि सकैं, ताको लगे दोष।
कहैं कबीर वा जीव सों, कबहु न पावै मोष॥
इन अटकाया न रुके, साधु दरश को जाय।
कहैं कबीर सोई संतजन, मोक्ष मुक्ति फल पाय॥
खाली साधु न बिदा करूँ, सुन लीजै सब कोय।
कहैं कबीर कछु भेंट धरूँ, जो तेरे घर होय॥
सुनिये पार जो पाइया, छाजिन भोजन आनि।
कहैं कबीर संतन को, देत न कीजै कानि॥