सुख-दुःख की महिमा
सुख - दुःख सिर ऊपर सहै, कबहु न छाडै संग। रंग न लागै और का, व्यापै सतगुरु रंग॥ कबीर गुरु कै भावते, दुरहि ते दीसन्त। तन छीना मन अनमना, जग से रूठि फिरंत॥ दासातन हरदै बसै, साधुन सो अधिन। कहैं कबीर सो दास है, प्रेम भक्ति लवलीन॥ दास कहावन कठिन है, मैं दासन का दास। अब तो ऐसा होय रहूँ, पाँव तले कि घास॥ लगा रहै सतज्ञान सो सबही बन्धन तोड़। कहैं कबीर वा दास को, काल रहै हथजोड़॥

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