हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को
हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को, यकायक हमसे छुड़ाया उसी काशाने को। आसमां क्या यहां बाक़ी था ग़ज़ब ढाने को? क्या कोई और बहाना न था तरसाने को? फिर न गुलशन में हमें लाएगा सैयाद कभी, क्यों सुनेगा तू हमारी कोई फरियाद कभी, याद आएगा किसे ये दिले-नाशाद कभी, हम कि इस बाग़ में थे, कै़द से आज़ाद कभी, अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को! दिल फ़िदा करते हैं, कुर्बान जिगर करते हैं, पास जो कुछ है, वो माता की नज़र करते हैं, ख़ाना वीरान कहां, देखिए घर करते हैं, अब रहा अहले-वतन, हम तो सफ़र करते हैं, जा के आबाद करेंगे किसी विराने को! देखिए कब यह असीराने मुसीबत छूटें, मादरे-हिंद के अब भाग खुलें या फूटें, देश-सेवक सभी अब जेल में मूंजे कूटें, आप यहां ऐश से दिन-रात बहारें लूटें, क्यों न तरजीह दें, इस जीने से मर जाने को! कोई माता की उमीदों पे न डाले पानी, ज़िंदगी भर को हमें भेज दे काले पानी, मुंह में जल्लाद, हुए जाते हैं छाले पानी, आबे-खंजर को पिला करके दुआ ले पानी, भर न क्यों पाए हम, इस उम्र के पैमाने को! हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर, हमको भी पाला था मां-बाप ने दुख सह-सहकर, वक़्ते-रुख़सत उन्हें इतना ही न आए कहकर, गोद में आंसू कभी टपके जो रुख़ से बहकर, तिफ़्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को! देश-सेवा ही का बहता है लहू नस-नस में, अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की क़समें, सरफ़रोशी की, अदा होती हैं यो ही रस्में, भाई ख़ंजर से गले मिलते हैं सब आपस में, बहने तैयार चिताओं में हैं जल जाने को! नौजवानो, जो तबीयत में तुम्हारी खटके, याद कर लेना कभी हमको भी भूले-भटके, आपके अजबे-बदन होवें जुदा कट-कट के, और सद चाक हो, माता का कलेजा फट के, पर न माथे पे शिकन आए, क़सम खाने को! अपनी क़िस्मत में अज़ल ही से सितम रक्खा था, रंज रक्खा था, मिहन रक्खा था, ग़म रक्खा था, किसको परवाह थी, और किसमें ये दम रक्खा था, हमने जब वादी-ए-गुरबत में क़दम रखा था, दूर तक यादे-वतन आई थी समझाने को! अपना कुछ ग़म नहीं लेकिन ये ख़याल आता है, मादरे हिंद पे कब से ये ज़वाल आता है, देशी आज़ादी का कब हिंद में साल आता है, क़ौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है, मुंतज़िर रहते हैं हम ख़ाक में मिल जाने को! मैक़दा किसका है, ये जामो-सबू किसका है? वार किसका है मेरी जां, यह गुलू किसका है? जो बहे क़ौम की ख़ातिर वो लहू किसका है? आसमां साफ़ बता दे, तू अदू किसका है? क्यों नये रंग बदलता है ये तड़पाने को! दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पूछो, मरने वालों से ज़रा लुत्फ़े-शहादत पूछो, चश्मे-मुश्ताक़ से कुछ दीद की हसरत पूछो, जां निसारों से ज़रा उनकी हक़ीक़त पूछो, सोज़ कहते हैं किसे, पूछो तो परवाने को! बात सच है कि इस बात की पीछे ठानें, देश के वास्ते कुरबान करें सब जानें, लाख समझाए कोई, एक न उसकी मानें, कहते हैं, ख़ून से मत अपना गिरेबां सानें, नासेह, आग लगे तेरे इस समझाने को! न मयस्सर हुआ राहत में कभी मेल हमें, जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें, एक दिन को भी न मंजूर हुई बेल हमें, याद आएगी अलीपुर की बहुत जेल हमें, लोग तो भूल ही जाएंगे इस अफ़साने को! अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली, एक होती है फ़कीरों की हमेशा बोली, ख़ून से फाग रचाएगी हमारी टोली, जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली, कोई उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को! नौजवानो, यही मौक़ा है, उठो, खुल खेलो, खि़दमते क़ौम में जो आए बला, तुम झेलो, देश के सदके में माता को जवानी दे दो, फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएं, ले लो, देखें कौन आता है, इर्शाद बजा लाने को!

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