गुलामी मिटा दो
दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा, एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा। बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन, मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा। यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह, दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा। ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल मंे, हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा। बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं, ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा। जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़, गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा। हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों? शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा। ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा, कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा।

Read Next