मातृ-वन्दना
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ

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