फूल
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ? फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ? हो मदान्ध निज निर्माता को गयो हृदय से भूल रूप-रंग लखि करें चाह सब, को‍उ लखे नहिं शूल अन्त-समय पद-दलित होयगी निश्चय तेरी धूल चलत समीर सुहावन जब लौं समय रहे अनुकूल । फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ? फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ? यौवन मद-मत्सर में काट्यो, पर-हित कियो न भूल अम्ब कहाँ से मिल सकता है यदि बो दिए बबूल नश्वर देह मिले माटी में होकर नष्ट समूल प्यारे ! घटत आयुक्षण पल-पल जय हरि मंगल मूल फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ? फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

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