माध्यम
मैं माध्यम हूँ, मौलिक विचार नहीं, कनफ़्युशियस ने कहा । तो मौलिक विचार कहाँ मिलते हैं, खिले हुए फूल ही नए वृन्तों पर दुबारा खिलते हैं । आकाश पूरी तरह छाना जा चुका है, जो कुछ जानने योग्य था, पहले ही जाना जा चुका है । जिन प्रश्नों के उत्तर पहले नहीं मिले, उनका मिलना आज भी मुहाल है । चिंतकों का यह हाल है कि वे पुराने प्रश्नों को नए ढंग से सजाते हैं और उन्हें ही उत्तर समझकर भीतर से फूल जाते हैं । मगर यह उत्तर नहीं, प्रश्नों का हाहाकार है । जो सत्य पहले अगोचर था, वह आज भी तर्कों के पार है ।

Read Next