गीत का जन्म
एक अन्धकार बरसाती रात में बर्फ़ीले दर्रों-सी ठंडी स्थितियों में अनायास दूध की मासूम झलक सा हंसता, किलकारियां भरता एक गीत जन्मा और देह में उष्मा स्थिति संदर्भॊं में रोशनी बिखेरता सूने आकाशों में गूंज उठा : -बच्चे की तरह मेरी उंगली पकड़ कर मुझे सूरज के सामने ला खड़ा किया । यह गीत जो आज चहचहाता है अन्तर्वासी अहम से भी स्वागत पाता है नदी के किनारे या लावारिस सड़कों पर नि:स्वन मैदानों में या कि बन्द कमरों में जहां कहीं भी जाता है मरे हुए सपने सजाता है- -बहुत दिनों तड़पा था अपने जनम के लिये ।

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