गीति-1
माँझी, मत हो अधिक अधीर। साँझ हुई सब ओर निशा ने फैलाया निडाचीर, नभ से अजन बरस रहा है नहीं दीखता तीर, किन्तु सुनो! मुग्धा वधुओं के चरणों का गम्भीर किंकिणि-नूपुर शब्द लिये आता है मन्द समीर। थोड़ी देर प्रतीक्षा कर लो साहस से, हे वीर- छोड़ उन्हें क्या तटिनी-तट पर चल दोगे बेपीर? माँझी, मत हो अधिक अधीर।

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