जीवन-छाया
पुल पर झुका खड़ा मैं देख रहा हूँ, अपनी परछाहीं सोते के निर्मल जल पर-- तल-पर, भीतर, नीचे पथरीले-रेतीले थल पर : अरे, उसे ये पल-पल भेद-भेद जाती है कितनी उज्ज्वल रंगारंग मछलियाँ।

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