वो निगाहें सलीब है
वो निगाहें सलीब है हम बहुत बदनसीब हैं आइये आँख मूँद लें ये नज़ारे अजीब हैं ज़िन्दगी एक खेत है और साँसे जरीब हैं सिलसिले ख़त्म हो गए यार अब भी रक़ीब है हम कहीं के नहीं रहे घाट औ’ घर क़रीब हैं आपने लौ छुई नहीं आप कैसे अदीब हैं उफ़ नहीं की उजड़ गए लोग सचमुच ग़रीब हैं

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