ज्योतिषी से
उस के दो लघु नयन-तारकों की झपकी ने मुझ को-अच्छे-भले सयाने को!-पल भर में कर दिया अन्धा मेरा सीधा, सरल, रसभरा जीवन एकाएक उलझ कर बन गया गोरख-धन्धा और ज्योतिषी! तुम अपने मैले-चीकट पोथी-पत्रे फैला कर, पोंगा पंडित! मुझे पढ़ाते हो पट्टी, रख दोगे इतने बड़े गगन के सारे तारों के रहस्य समझा कर?

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