चक्रान्त शिला - 24
उसी एकान्त में घर दो जहाँ पर सभी आवें: वही एकान्त सच्चा है जिसे सब छू सकें। मुझ को यही वर दो उसी एकान्त में घर दो कि जिस में सभी आवें-मैं न आऊँ। नहीं मैं छू भी सकूँ जिस को मुझे ही जो छुए, घेरे समो ले। क्यों कि जो कुछ मुझ से छुआ जा सका- मेरे स्पर्श से चटका-न ही है आसरा, वह छत्र कच्चा है: वही एकान्त सच्चा है जिसे छूने मैं चलूँ तो मैं पलट कर टूट जाऊँ। लौट कर फिर वहीं आऊँ किन्तु पाऊँ जो उसे छू रहा है वह मैं नहीं हूँ : सभी हैं वे। सभी : वह भी जो कि इस का बोध मुझ तक ला सका। उसी एकन्त में घर दो-यही वर दो।

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