चक्रान्त शिला – 13
अकेली और अकेली। प्रियतम धीर, समुद सब रहने वाला; मनचली सहेली। अकेला: वह तेजोमय है जहाँ, दीठ बेबस झुक जाती है; वाणी तो क्या, सन्नाटे तक की गूँज वहाँ चुक जाती है। शीतलता उस की एक छुअन भर से सारे रोमांच शिलित कर देती है, मन के द्रुत रथ की अविश्रान्त गति कभी नहीं उस का पदनख तक परिक्रान्त कर पाती है। वह इस लिए अकेला। अकेला: जो कहना है, वह भाषा नहीं माँगता। इस लिए किसी की साक्षी नहीं माँगता, जो सुनना है, वह जहाँ झरेगा तेज-भस्म कर डालेगा- तब कैसे कोई उसे झेलने के हित पर से साझा पालेगा? वह इस लिए निरस्त्र, निर्वसन, निस्साधन, निरीह, इस लिए अकेली।

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