चक्रान्त शिला – 9
जो बहुत तरसा-तरसा कर मेघ से बरसा हमें हरसाता हुआ, -माटी में रीत गया। आह! जो हमें सरसाता है वह छिपा हुआ पानी है हमारा इस जानी-पहचानी माटी के नीचे का। -रीतता नहीं बीतता नहीं।

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