चक्रान्त शिला – 8
जितनी स्फीति इयत्ता मेरी झलकती है उतना ही मैं प्रेत हूँ। जितना रूपाकार-सारमय दीख रहा हूँ रेत हूँ। फोड़-फोड़ कर जितने को तेरी प्रतिमा मेरे अनजाने, अनपहचाने अपने ही मनमाने अंकुर उपजाती है-बस, उतना मैं खेत हूँ।

Read Next