पाठक के प्रति कवि
मेरे मत होओ पर अपने को स्थगित करो जैसा कि मैं अपने सुख-दुःख का नहीं हुआ दर्द अपना मैं ने खरीदा नहीं न आनन्द बेचा; अपने को स्थगित किया मैं ने, अनुभव को दिया साक्षी हो, धरोहर हो, प्रतिभू हो जिया।

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