वह क्या लक्ष्य
वह क्या लक्ष्य जिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष बताने की, क्या पाया? वह कैसा पथ-दर्शक जो सारा पथ देख स्वयं फिर आया और साथ में-आत्म-तोष से भरा- मान-चित्र लाया! और वह कैसा राही कहे कि हाँ, ठहरो, चलता हूँ इस दोपहरी में भी, पर इतना बतला दो कितना पैंडा मार मिलेगी पहली छाया?

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