चक्रान्त शिला – 5
एक चिकना मौन जिस में मुखर तपती वासनाएँ दाह खोती लीन होती हैं। उसी में रवहीन तेरा गूँजता है छन्द: ऋत विज्ञप्त होता है। एक काले घोल की-सी रात जिस में रूप, प्रतिमा, मूर्तियाँ सब पिघल जातीं ओट पातीं एक स्वप्नातीत, रूपातीत पुनीत गहरी नींद की। उसी में से तू बढ़ा कर हाथ सहसा खींच लेता-गले मिलता है।

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