चक्रान्त शिला – 4
किरण जब मुझ पर झरी मैं ने कहा मैं वज्र कठोर हूँ-पत्थर सनातन। किरण बोली: भला? ऐसा! तुम्हीं को तो खोजती थी मैं तुम्हीं से मन्दिर गढ़ूँगी तुम्हारे अन्तःकरण से तेज की प्रतिमा उकेरूँगी। स्तब्ध मुझ को किरण ने अनुराग से दुलरा लिया।

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