उषाकाल की भव्य शान्ति
निविडाऽन्धकार को मूर्त रूप दे देने वाली एक अकिंचन, निष्प्रभ, अनाहूत, अज्ञात द्युति-किरण: आसन्न-पतन, बिन जमी ओस की अन्तिम ईषत्करण, स्निग्ध, कातर शीतलता अस्पृष्ट किन्तु अनुभूत: दूर किसी मीनार-क्रोड़ से मुल्ला का एक रूप पर अनेक भावोद्दीपक गम्भीरऽर आऽह्वाऽन: 'अस्सला तु ख़ैरम्मिनिन्ना:' निकट गली में किसी निष्करुण जन से बिन कारण पदाक्रान्त पिल्ले की करुण रिरियाहट और गली के छप्पर-तल में शिशु का तुमक-तुनक कर रोना, मातृ-वक्ष को आतुर। ऊपर व्याप्त ओर-छोर मुक्त नीऽलाकाऽश: दो अनथक अपलक-द्युति ग्रह, रात-रात में नभ का आधा व्यास पार कर फिर भी नियति-बद्ध, अग्रसर। उषाकाल: अनायास उठ गया चेतना से निद्रा का आँचल मिला न पर पार्थक्य: पड़ा मैं स्तब्ध, अचंचल, मैं ही हूँ वह पदाक्रान्त रिरियाता कुत्ता- मैं ही वह मीनार-शिखर का प्रार्थी मुल्ला मैं वह छप्पर-तल का अहंलीन शिशु-भिक्षुक- और, हाँ, निश्चय, मैं वह तारक-युग्म अपलक-द्युति अनथक-गति, बद्ध-नियति जो पार किये जा रहा नील मरु प्रांगण नभ का! मैं हूँ ये सब, ये सब मुझ में जीवित- मेरे कारण अवगत, मेरे चेतन में अस्तित्व-प्राप्त! उषाकाल उषाकाल की रहस्यमय भव्य शान्ति...

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