खिड़की एकाएक खुली
खिड़की एकाएक खुली, बुझ गया दीप झोंके से, हो गया बन्द वह ग्रन्थ जिसे हम रात-रात घोखते रहे, पर खुला क्षितिज, पौ फटी, प्रात निकला सूरज, जो सारे अन्धकार को सोख गया। धरती प्रकाश-आप्लावित! हम मुक्त-कंठ मुक्त-हृदय मुग्ध गा उठे बिना मौन को भंग किये। कौन हम? उसी सूर्य के दूत अनवरत धावित।

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