क्षण-भर सम्मोहन छा जावे!
क्षण-भर सम्मोहन छा जावे! क्षण-भर स्तम्भित हो जावे यह अधुनातन जीवन का संकुल- ज्ञान-रूढि़ की अनमिट लीकें, ह्रत्पट से पल-भर जावें धुल, मेरा यह आन्दोलित मानस, एक निमिष निश्चल हो जावे! मेरा ध्यान अकम्पित है, मैं क्षण में छवि कर लूँगा अंकित, स्तब्ध हृदय फिर नाम-प्रणय से होगा दु:सह गति से स्पन्दित! एक निमिष-भर, बस! फिर विधि का घन प्रलयंकर बरसा आवे क्रूर काल-कर का कराल शर मुझ को तेरे वर-सा आवे! क्षण-भर सम्मोहन छा जावे!

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