ओ मेरे दिल!-1
धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल! तुझ में सामथ्र्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल! जब ईसा को दे कर सूली जनता न समाती थी फूली, हँसती थी अपने भाई की तिकटी पर देख देह झूली, ताने दे-दे कर कहते थे सैनिक उस को बेबस पा कर : "ले अब पुकार उस ईश्वर को-बेटे को मुक्त करे आ कर!" जब तख्ते पर कर-बद्ध टँगे, नरवर के कपड़े खून-रँगे, पाँसे के दाँव लगा कर वे सब आपस में थे बाँट रहे, तब जिस ने करुणा से भर कर उस जगत्पिता से आग्रह कर माँगा था, "मुझे यही वर दे: इन के अपराध क्षमा कर दे!" वह अन्त समय विश्वास-भरी जग से घिर कर संन्यास-भरी अपनी पीड़ा की तड़पन में भी पर-पीड़ा से त्रास-भरी ईसा की सब सहने वाली चिर-जागरुक रहने वाली यातना तुझे आदर्श बने कटु सुन मीठा कहने वाली! तुझ में सामथ्र्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल- धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!

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