नंदा देवी-1
ऊपर तुम, नंदा! नीचे तरु-रेखा से मिलती हरियाली पर बिखरे रेवड़ को दुलार से टेरती-सी गड़रिए की बाँसुरी की तान: और भी नीचे कट गिरे वन की चिरी पट्टियों के बीच से नए खनि-यंत्र की भठ्ठी से उठे धुएँ का फंदा। नदी की घेरती-सी वत्सल कुहनी के मोड़ में सिहरते-लहरते शिशु धान। चलता ही जाता है यह अंतहीन, अन-सुलझ गोरख-धंधा! दूर, ऊपर तुम, नंदा!

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