नंदा देवी
नंदा, बीस-तीस-पचास वर्षों में तुम्हारी वनराजियों की लुगदी बनाकर हम उस पर अखबार छाप चुके होंगे तुम्हारे सन्नाटे को चीर रहे होंगे हमारे धुँधुआते शक्तिमान ट्रक, तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंगे और तुम्हारी नदियाँ ला सकेंगी केवल शस्य-भक्षी बाढ़ें या आँतों को उमेठने वाली बीमारियाँ तुम्हारा आकाश हो चुका होगा हमारे अतिस्वन विमानों के धूम-सूत्रों का गुंझर। नंदा, जल्दी ही- बीस-तीस-पचास बरसों में हम तुम्हारे नीचे एक मरु बिछा चुके होंगे और तुम्हारे उस नदी धौत सीढ़ी वाले मंदिर में जला करेगा एक मरुदीप।

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