मैंने पूछा क्या कर रही हो
मैंने पूछा यह क्या बना रही हो? उसने आँखों से कहा धुआँ पोछते हुए कहा : मुझे क्या बनाना है ! सब-कुछ अपने आप बनता है मैंने तो यही जाना है। कह लो भगवान ने मुझे यही दिया है। मेरी सहानुभूति में हठ था : मैंने कहा : कुछ तो बना रही हो या जाने दो, न सही – बना नहीं रही – क्या कर रही हो ? वह बोली : देख तो रहे हो छीलती हूँ नमक छिड़कती हूँ मसलती हूँ निचोड़ती हूँ कोड़ती हूँ कसती हूँ फोड़ती हूँ फेंटती हूँ महीन बिनारती हूँ मसालों से सँवारती हूँ देगची में पलटती हूँ बना कुछ नहीं रही बनाता जो है - यह सही है- अपने–आप बनाता है पर जो कर रही हूँ- एक भारी पेंदे मगर छोटे मुँह की देगची में सब कुछ झोंक रही हूँ दबा कर अँटा रही हूँ सीझने दे रही हूँ। मैं कुछ करती भी नहीं- मैं काम सलटती हूँ। मैं जो परोसूँगी जिन के आगे परोसूँगी उन्हें क्या पता है कि मैंने अपने साथ क्या किया है ?

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