देना-पाना
दो?हाँ, दो बड़ा सुख है देना! देने में अस्ति का भवन नींव तक हिल जाएगा- पर गिरेगा नहीं, और फिर बोध यह लायेगा कि देना नहीं है नि:स्व होना और वह बोध, तुम्हें स्वतंत्रतर बनायेगा। लो? हाँ लो! सौभाग्य है पाना, उसकी आँधी से रोम-रोम एक नई सिहरन से भर जायेगा। पाने में जीना भी कुछ खोना, यों नि:स्व होना तो नहीं, पर है कहीं ऊना हो जाना, पाना अस्मिता का टूट जाना, वह उन्मोचन-यह सोच लो, वह क्या झिल पायेगा?

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