फूल की स्मरण-प्रतिमा
यह देने का अहंकार छोड़ो । कहीं है प्यार की पहचान तो उसे यों कहो : 'मधुर ये देखो फूल । इसे तोड़ो; घुमा-फिरा कर देखो, फिर हाथ से गिर जाने दो : हवा पर तिर जाने दो- (हुआ करे सुनहली) धूल ।' फूल की स्मरण-प्रतिमा ही बचती है । तुम नहीं, न तुम्हारा दान ।

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