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नाता-रिश्ता-4
नाता-रिश्ता-4
अज्ञेय
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Hindi
वही, वैसे ही अपने को पा ले, नहीं तो और मैंने कब, कहाँ तुम्हें पाया है? हाँ-- बातों के बीच की चुप्पियों में हँसी में उलझ कर अनसुनी हो गई आहों में तीर्थों की पगडंडियों में बरसों पहले गुज़रे हुए यात्रियों की दाल-बाटी की बची-बुझी राखों में !
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Last edited by
Chhotaladka
October 29, 2016
Added by
Chhotaladka
June 19, 2016
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