नाता-रिश्ता-4
वही, वैसे ही अपने को पा ले, नहीं तो और मैंने कब, कहाँ तुम्हें पाया है? हाँ-- बातों के बीच की चुप्पियों में हँसी में उलझ कर अनसुनी हो गई आहों में तीर्थों की पगडंडियों में बरसों पहले गुज़रे हुए यात्रियों की दाल-बाटी की बची-बुझी राखों में !

Read Next