खुल गई नाव
खुल गई नाव घिर आई संझा, सूरज         डूबा सागर-तीरे। धुंधले पड़ते से जल-पंछी भर धीरज से         मूक लगे मंडराने, सूना तारा उगा चमक कर         साथी लगा बुलाने। तब फिर सिहरी हवा लहरियाँ काँपीं तब फिर मूर्छित व्यथा विदा की         जागी धीरे-धीरे।

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