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योगफल
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अज्ञेय
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सुख मिला : उसे हम कह न सके। दुख हुआ: उसे हम सह न सके। संस्पर्श बृहत का उतरा सुरसरि-सा : हम बह न सके । यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित जीवित भी हम रह न सके।
जेनेवा, 12 सितम्बर, 1955
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abhishek
September 20, 2020
Added by
Chhotaladka
June 19, 2016
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