प्रथम किरण
भोर की प्रथम किरण फीकी। अनजाने जागी हो याद किसी की- अपनी मीठी नीकी। धीरे-धीरे उदित रवि का लाल-लाल गोला चौंक कहीं पर छिपा मुदित बनपाखी बोला दिन है जय है यह बहुजन की। प्रणति, लाल रवि, ओ जन-जीवन लो यह मेरी सकल भावना तन की, मन की- वह बनपाखी जाने गरिमा महिमा मेरे छोटे चेतन छन की!

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