अमीर लाख इधर से उधर ज़माना हुआ
अमीर लाख इधर से उधर ज़माना हुआ वो बुत वफ़ा पे न आया मैं बे-वफ़ा न हुआ सर-ए-नियाज़ को तेरा ही आस्ताना हुआ शराब-ख़ाना हुआ या क़िमार-ख़ाना हुआ हुआ फ़रोग़ जो मुझ को ग़म-ए-ज़माना हुआ पड़ा जो दाग़ जिगर में चराग़-ए-ख़ाना हुआ उम्मीद जा के नहीं उस गली से आने की ब-रंग-ए-उम्र मिरा नामा-बर रवाना हुआ हज़ार शुक्र न ज़ाए हुई मिरी खेती कि बर्क़ ओ सैल में तक़्सीम दाना दाना हुआ क़दम हुज़ूर के आए मिरे नसीब खुले जवाब-ए-क़स्र-ए-सुलैमाँ ग़रीब-ख़ाना हुआ तिरे जमाल ने ज़ोहरा को दौर दिखलाया तिरे जलाल से मिर्रीख़ का ज़माना हुआ कोई गया दर-ए-जानाँ पे हम हुए पामाल हमारा सर न हुआ संग-ए-आस्ताना हुआ फ़रोग़-ए-दिल का सबब हो गई बुझी जो हवस शरार-ए-कुश्ता से रौशन चराग़-ए-ख़ाना हुआ जब आई जोश पे मेरे करीम की रहमत गिरा जो आँख से आँसू दुर-ए-यगाना हुआ हसद से ज़हर तन-ए-आसमाँ में फैल गया जो अपनी किश्त में सरसब्ज़ कोई दाना हुआ चुने महीनों ही तिनके ग़रीब बुलबुल ने मगर नसीब न दो रोज़ आशियाना हुआ ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ में छाई ये तीरगी शब-ए-हिज्र कि ख़ाल-ए-चेहरा-ए-ज़ख़्मी चराग़-ए-ख़ाना हुआ ये जोश-ए-गिर्या हुआ मेरे सैद होने पर कि चश्म-ए-दाम के आँसू से सब्ज़ दाना हुआ न पूछ नाज़-ओ-नियाज़ उस के मेरे कब से हैं ये हुस्न ओ इश्क़ तो अब है उसे ज़माना हुआ उठाए सदमे पे सदमे तो आबरू पाई अमीर टूट के दिल गौहर-ए-यगाना हुआ

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