क़रीब है यारों रोज़-ए-महशर छुपेगा कुश्तों का ख़ून क्यूँकर
क़रीब है यारों रोज़-ए-महशर छुपेगा कुश्तों का ख़ून क्यूँकर जो चुप रहेगी ज़बान-ए-ख़ंजर लहू पुकारेगा आस्तीं का

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