कबाब-ए-सीख़ हैं हम करवटें हर-सू बदलते हैं
कबाब-ए-सीख़ हैं हम करवटें हर-सू बदलते हैं जल उठता है जो ये पहलू तो वो पहलू बदलते हैं

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