औकात
वे पत्थरों को पहनाते हैं लंगोट पौधों को चुनरी और घाघरा पहनाते हैं वनों, पर्वतों और आकाश की नग्नता से होकर आक्रांत तरह-तरह से अपनी अश्लीलता का उत्सव मनाते हैं देवी-देवताओं को पहनाते हैं आभूषण और फिर उनके मन्दिरों का उद्धार करके उन्हें वातानुकूलित करवाते हैं इस तरह वे ईश्वर को उसकी औकात बताते हैं ।

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