देखता हूँ अँधेरे में अँधेरा
लाल रोशनी न होने का अँधेरा नीली रोशनी न होने के अँधेरे से अलग होता है इसी तरह अँधेरा अँधेरे से अलग होता है। अँधेरे को दोस्त बना लेना आसान है उसे अपने पक्ष में भी किया जा सकता है सिर्फ उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। भरोसा रोशनी पर तो हरगिज नहीं हरी चीजें लाल रोशनी में काली नजर आती हैं दरअसल चीजें खुद कुछ कम शातिर नहीं होतीं वे उन रंगों की नहीं दिखतीं जिन्हें सोख लेती हैं बल्कि उन रंगों की दिखाई देती हैं जिन्हें लौटा रही होती हैं वे हमेशा अपनी अस्वीकृति के रंग ही दिखाती हैं औरों की क्या कहूँ मेरी बाईं आँख ही देखती है कुछ और दाईं कुछ और देखती है बायाँ पाँव जाता है कहीं और दायाँ, कहीं और जाता है पास आओ दोस्तों अलग करें सन्नाटे को सन्नाटे से अँधेरे को अँधेरे से और नरेश को नरेश से।

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