धातुएँ
सूर्य से अलग होकर पृथ्वी का घूमना शुरू हुआ शुरू हुआ चुंबकत्व धातुओं की भूमिका शुरू हुई धातु युग से पहले भी था धातु युग धातु युग से पहले भी है धातु युग कौन कहता है कि धातुएं फलती-फूलती नहीं हैं इन दिनों फलों और फूलों में वे सबसे ज़्यादा मिलती हैं पानी के बाद मछलियों और पक्षियों में होती हुई वे आकाश-पाताल एक कर रही हैं दफ़्तर जाते हुए या बाज़ार या घर लौटते हुए वे हमें घेर लेती हैं धुंए में और ख़ून में घुलने लगती हैं चिंतित हैं धातुविज्ञानी कि असंतुलित हो रहे हैं धरती पर धातु के भंडार कि वे उनके जिगर में, गुर्दों में, नाखूनों में, त्वचा में, बालों की जड़ों में जमती जा रही हैं अभी वे विचारों में फैल रही हैं लेकिन एक दिन वे बैठी मिलेंगी हमारी आत्मा में फिर क्या होगा गर्मी में गर्म और सर्दी में ठंडी खींचो तो खिंचती चली जायेंगी पीटो तो पिटती चली जायेंगी ऐसा भी नहीं है कि इससे पूरी तरह बेख़बर हैं लोग मुझसे तो कई बार पूछ चुके हैं मेरे दोस्त कि यार नरेश तुम किस धातु के बने हो!

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