साम्य
समुद्र के निर्जन विस्तार को देखकर वैसा ही डर लगता है जैसा रेगिस्तान को देखकर समुद्र और रेगिस्तान में अजीब साम्य है दोनो ही होते हैं विशाल लहरों से भरे हुए और दोनों ही भटके हुए आदमी को मारते हैं प्यासा।

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