अहल-ए-दवल में धूम थी रोज़-ए-सईद की
अहल-ए-दवल में धूम थी रोज़-ए-सईद की मुफ़्लिस के दिल में थी न किरन भी उम्मीद की इतने में और चरख़ ने मट्टी पलीद की बच्चे ने मुस्कुरा के ख़बर दी जो ईद की फ़र्त-ए-मिहन से नब्ज़ की रफ़्तार रुक गई माँ-बाप की निगाह उठी और झुक गई आँखें झुकीं कि दस्त-ए-तिही पर नज़र गई बच्चे के वल-वलों की दिलों तक ख़बर गई ज़ुल्फ़-ए-सबात ग़म की हवा से बिखर गई बर्छी सी एक दिल से जिगर तक उतर गई दोनों हुजूम-ए-ग़म से हम-आग़ोश हो गये इक दूसरे को देख के ख़ामोश हो गये

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