मसनद-ए-ग़म पे जच रहा हूँ मैं
मसनद-ए-ग़म पे जच रहा हूँ मैं अपना सीना खुरच रहा हूँ मैं ऐ सगान-ए-गुरसना-ए-अय्याम जूँ ग़िज़ा तुम को पच रहा हूँ मैं अन्दरून-ए-हिसार-ए-ख़ामोशी शोर की तरह मच रहा हूँ मैं वक़्त का ख़ून-ए-राएगाँ हूँ मगर ख़ुश्क लम्हों में रच रहा हूँ मैं ख़ून में तर-ब-तर रहा मिरा नाम हर ज़माने का सच रहा हूँ मैं हाल ये है कि अपनी हालत पर ग़ौर करने से बच रहा हूँ मैं

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