अशवों को चैन ही नहीं आफ़त किये बगैर
अशवों को चैन नहीं आफ़त किये बगैर तुम, और मान जाओ शरारत किये बगैर! अहल-ए-नज़र को यार दिखाना राह-ए-वफ़ा ऐ काश! ज़िक्र-ए-दोज़ख-ओ-जन्नत किये बगैर अब देख उस का हाल कि आता न था करार खुद तेरे दिल को, जिस पे इनायत किये बगैर ऐ हमनशीं मुहाल है नासेह का टालना यह, और यहाँ से जाएँ नसीहत किये बगैर तुम कितने तुन्द-खू हो कि पहलू से आज तक एक बार भी उठे न क़यामत किये बगैर

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