ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी
ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी मैं भी बर्बाद हो गया तू भी हुस्न-ए-मग़मूम तमकनत में तिरी फ़र्क़ आया न यक-सर-ए-मू भी ये न सोचा था ज़ेर-ए-साया-ए-ज़ुल्फ़ कि बिछड़ जाएगी ये ख़ुश-बू भी हुस्न कहता था छेड़ने वाले छेड़ना ही तो बस नहीं छू भी हाए वो उस का मौज-ख़ेज़ बदन मैं तो प्यासा रहा लब-ए-जू भी याद आते हैं मोजज़े अपने और उस के बदन का जादू भी यासमीं उस की ख़ास महरम-ए-राज़ याद आया करेगी अब तू भी याद से उस की है मिरा परहेज़ ऐ सबा अब न आइयो तू भी हैं यही 'जौन-एलिया' जो कभी सख़्त मग़रूर भी थे बद-ख़ू भी

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