वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिस
वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे अल्लाह रे ख़ाकसारिए रिंदाँने बादाख्वार रश्क-ए-ग़ुरूर-ओ-क़ैसर-ओ-कसरा कहें जिसे बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई इस चर्ख़-ए-नाज़ से क़द-ए-बाला कहें जिसे ज़ुल्फ़-ए-हयात नोएबशर में है आज तक ज़ख़्म-ए-गुनाह-ए-आदम-ओ-हव्वा कहें जिसे कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब दिल की ज़ुबाँ में वादा-ए-फ़रदा कहें जिसे मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीम-ए-ज़ुल्फ़ मेरी नज़र है चेहरा-ए-ज़ेबा कहें जिसे लो आ रहा है वो कोई मस्त-ए-ख़राम से इस चाल से के लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे तेरे निशात-ए-ख़ाना-ए-अमरोज़ में नहीं वो बुज़दिली के ख़तरा-ए-फ़रदा कहें जिसे ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे

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