मयंक
प्रकृति देवि कल मुक्तमाल मणि गगनांगण का रत्न प्रदीप। भव्य बिन्दु दिग्वधू भाल का मंजुलता अवनी अवनीप। रजनि, सुन्दरी रंजितकारी कलित कौमुदी का आधार। बिपुल लोक लोचन पुलकित कर कुमुदिनि-वल्लभ शोभा सार।1। रसिक चकोर चारु अवलम्बन सुन्दरता का चरम प्रभाव। महिला मुख-मंडल का मंडन भावुक-मानस का अनुभाव। रुला रुला कर अवनी-तल को कर सूना राका का अंक। काल-जलधि में डूब रहा है कलाहीन हो कलित मयंक।2।

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