खद्योत
प्रकृति-चित्र-पट असित-भूत था छिति पर छाया था तमतोम। भाद्र-मास की अमा-निशा थी जलदजाल पूरित था व्योम। काल-कालिमा-कवलित रवि था कलाहीन था कलित मयंक। परम तिरोहित तारक-चय था, था कज्जलित ककुभ का अंक।1। दामिनि छिपी निविड़ घन में थी अटल राज्य तम का अवलोक। था निशीथ का समय, अवनितल का निर्वापित था आलोक। ऐसे कुसमय में तम-वारिधि मज्जित भूत निचय का पोत। होता कौन न होता जग में यदि यह तुच्छ कीट खद्योत।2।

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