'नूर-जहाँ'
हुजूम-ए-यास में जोत आस की तिरी आवाज़ हम अहल-ए-दर्द की है ज़िंदगी तिरी आवाज़ लबों पे खिलते रहें फूल शेर-ओ-नग़्मा के फ़ज़ा में रंग बिखेरे यूँही तिरी आवाज़ दयार-ए-दीदा-ओ-दिल में है रौशनी तुझ से है चेहरा चाँद मधुर चाँदनी तिरी आवाज़ हो नाज़ क्यूँ न मुक़द्दर पे अपने 'नूर-जहाँ' तुझे क़रीब से देखा सुनी तिरी आवाज़ न मिट सकेगा तिरा नाम रहती दुनिया तक रहेगी यूँही सदा गूँजती तिरी आवाज़

Read Next