माधुरी
अति-पुनीत-अलौकिकता भरी। विबुध-वृन्द अतीव-विनोदिनी। मधुरिमा गरिमा महिमा मयी। कथित है महिमामय-माधुरी।1। नयन है किस का न बिमोहती। गगन के तल की नव-नीलिमा। विमलता मय तारक-मालिका। जग-विमुग्ध करी विधु-माधुरी।2। सरसता मय है सरसा-सुधा। मलय-मारुत कोकिल-काकली। मुकुलिता-लतिका रजनी सिता। कल-निनाद कलाकर-माधुरी।3। स-रव है रव से पिक-पुंज के। स-छबि है छबि पा तरु-तोम की। सरस है सरसीरुह-वृन्द से। समधु है मधु-माधव-माधुरी।4। विदित है तप की तपमानता। सरस-पावस की उपकारिता। शरद-निर्मलता हिम-शीतता। शिशिर-मंजुलता मधु-माधुरी।5। बहु-प्रफुल्ल किसे करती नहीं। नवल - कोमल - कान्त - तृणावली। ककुभ में लसिता कल-कौमुदी। बिलसिता वसुधा-तल-माधुरी।6। कलित-कल्पलता कमनीय है। ललित है कर लाभ ललामता। सकल केलि कला कुल कान्त है। बदन-मण्डल मंजुल-माधुरी।7। बिकच-पंकज मंजुल-मालती। कुसुम - भार - नता - नवला - लता। उदित-मंजु-मयंक समान है। मुदित-मानव मानस-माधुरी।8। कलित है विधु-कोमल-कान्ति सी। मृदुल-बेलि समान मनोरमा। मधार है मधापावलि-गान से। मधुमयी - कविता - गत - माधुरी।9। मधुमती बनती वसुधा रहे। मधु-निकेतन मानव-चित हो। मधुरता-मय-मानस के मिले। मधुरिमा-मय हो यह माधुरी।10।

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